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Writer's pictureTumlesh Neti

गर्मियों के दिनों में क्यों जंगलों में लगाते हैं आग छत्तीसगढ़ के आदिवासी?

Updated: Apr 7, 2021

पिछले एक महीने से छत्तीसगढ़ और ओडिशा में फैला सिमलीपाल वन जल रहा है। फरवरी में तापमान में अचानक वृद्धि के साथ एक लंबे समय तक सूखा पढ़ने के कारण ये आग लगी। यहां हमें यह जानना होगा कि ऐसे आग का आदिवासियों से क्या नाता है जो गर्मियों में जंगलों में आग लगाते हैं

सिमलीपाल वन

छत्तीसगढ़ के आदिवासी हमेशा से जंगल की पूजा करते हैं, उसकी रक्षा करते हैं। जंगल से ही उनकी जीविका चलती है, इसलिए जब गर्मी के मौसम में महुआ के पेड़ से फूल आने लगते हैं, उन्हें आदिवासी इकट्ठा करके सुखा के बेचते हैं जिससे उन्हें अच्छी खासी आमदनी मिलती है। महुआ के पेड़ के नीचे की जगह को साफ करने के लिए आदिवासी उस पेड़ के नीचे आग (दावानल) लगा देते हैं।

महुआ के पेड़ के नीचे सफाई करने के लिए लगाई गई आग

दावानल उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें वन के कुछ भागों में आग या पूरे वन में आग लगाई जाती है जिससे जीव-जंतु पेड़-पौधे नष्ट हो जाते हैं। आदिवासी आग सिर्फ पेड़ों के नीचे की ज़मीन को साफ़ करने के लिए और महुआ को कीड़े-मकोड़ों से बचाने के लिए लगाते हैं। इस वजह से लोगों को महुआ के फ़ूल को एकत्रित करने में आसानी होती है। इसके अलावा जंगलों से आदिवासी लोग तेंदूपत्ता भी तोड़ते हैं, इन् पौधों मैं नए पत्तों को उगाने के लिए भी आग लगाई जाती है। वह छोटे-छोटे पौधे पूरी तरह जल जाते हैं उसके बाद उनमे नया अंकुर निकलता है।


छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों के लिए महुआ और तेंदूपत्ता मुख्य आजीविका का साधन होता है। ये वन उपज उनकी आय का मुख्य स्रोत होता है और गर्मियों के दिनों में इसी से अपना गुजारा करते हैं।


अतीत में, आदिवासियों द्वारा लगायी गयी इन आग से जंगल को ज्यादा नुकसान नहीं होता था। लेकिन, जलवायु परिवर्तन और मौसम में बदलाव के कारण, छोटी आग बड़ी होती जा रही है और जंगलों को नुकसान पहुंचा रही है। ऐसे में जरुरत है की जाकरूकता अभियान घर घर तक पहुंचाया जाए जिससे की आदिवासी समुदाय के लोग दावानल की प्रक्रिया का बहुत सावधानी से पालन करें।

दावानल आग बुझाते जागरूक आदिवासी

कुछ स्थानों पर ही जागरूकता की कमी के कारण यह मुसीबत आ रही है, जिससे उस जंगल में रहने वाले छोटे-छोटे जीव जंतु और छोटे छोटे पेड़ पौधे जलकर राख बन जाते हैं। सरकार के इतने सारे प्रयासों के बाद भी आदिवासियों को जंगल नुकसान के बारे में पता भी नहीं चलता। और इन जंगलों में लगने वाली आग जहरीला धुआं भी निकलता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है। यह बहुत गंभीर समस्या बन गयी है।

रात के साथ हवा के कारण पूरे जंगल में फैली हुई (दावानल) आग

लेकिन आज तक सरकार द्वारा इसके खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है । हर साल इसी तरह गर्मियों के मौसम में बड़े से भी बड़ा जंगल आग के हवाले हो जाता है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मालेवा पहाड़ श्रृंखला में लगभग हर साल चार दिनों तक आग लगता है जो दूर से भी देखा जा सकता है। इसे बचाने के लिए गांव वाले भी प्रयास करते हैं लेकिन कुछ साधन नहीं होने के कारण वह लोग भी असफल हो जाते हैं। धीरे-धीरे सरकार जागरूक हो रही है गांव में टीम बनाकर आग बुझाने के लिए उन्हें ट्रेनिंग शिक्षा दिया जा रहा है।


आज छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई भी जंगल नहीं है जहां गर्मियों के दिनों में महुआ के फूल के लिए आग नहीं लगाया जाता होगा जिससे छत्तीसगढ़ में हर साल गर्मी के मौसम में वायु प्रदूषण होता है जिसे देखते हुए हर साल कई छोटे-छोटे जीव आग के हवाले हो जाते हैं और कई सारे छोटे-छोटे पौधे भी जलकर राख हो जाता है।


यह मुसीबत छत्तीसगढ़ी में ही नहीं है अपितु पूरे भारत एवं पूरे विश्व में है क्योंकि पूरे विश्व को 20 परसेंट ऑक्सीजन देने वाला अमेजॉन जैसा जंगल कई हफ्तों तक आग के हवाले रहा। जंगलों में होने वाले नुकसान को ठीक होने में कई साल लग जाते हैं। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम वनों को आग पकड़ने से रोकें।


यह आलेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत मिजेरियोर और प्रयोग समाज सेवी संस्था के सहयोग से तैयार किया गया है।

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