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बदलते मौसम के कारण टमाटर की खेती करने वाले किसानों को हो रहा नुकसान

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


गावों में खेती को जुआ भी कहा जाता है। क्योंकि, मौसम अच्छा रहा तो फसल भी अच्छा रहता है और यदि कहीं अधिक वर्षा हो जाता है तो फसल पानी में डूब कर खराब हो जाता है। और यदि वर्षा हुआ ही नहीं, तब फसल पानी के कमी के कारण सुख जाता है। मानसून हवा से भी फसल खराब होता है। मौसम बदलने से लोगों के जीवन में सीधा असर पड़ता है, लोगों को शारीरिक परेशानी का भी सामना करना पड़ता है। इसलिए लोग मौसम बदलने के कारण, मौसम से बचने के लिए हर मौसम में अपना पहनावा बदलते रहते हैं।


खराब मौसम होने के कारण, टमाटर की फसल अधिक होने के बाद भी टमाटर की खेती करने वाले किसानों को मुनाफा नहीं दे पाया। क्योंकि, मौसम के बदलने से टमाटर के पौधे ज्यादा मात्रा में पकने लगते हैं। और मार्केट में ज्यादा मात्रा में टमाटर आ जाते हैं तो टमाटर का रेट कम हो जाता है। फिर टमाटर कम मूल्य में बिकने लगता है। जिससे फसल अच्छा होने के बावजूद भी सही रेट नहीं मिलने से किसान निराश हो जाते हैं।

टमाटर तोड़ते हुए किसान

उप्पर तस्वीर में आप जो टमाटर के खेत देख रहे हैं वो बीजाझोरी के किसान राजा चंद्रवंशी के हैं। वह प्रति वर्ष टमाटर की फसल लगाते हैं। लेकिन, उन्हें इस वर्ष, पिछले साल के तुलना में उतना अधिक मुनाफा हाथ नहीं लगा। इस बार टमाटर इतने पके हैं कि, 100 मीटर के लाइन को तोड़ने पर 8 करेट टमाटर एक नाली से निकल रहा है। जिसे रखने के लिए करेट की कमी हो गयी है। एक दिन में आधे टमाटर की खेत को करीबन 20 लोगों ने तोड़ा तो, कुल मिलाकर 160 करेट टमाटर निकला। फिर, 160 करेट टमाटर को बिलासपुर सब्जी मंडी ले जाया गया। वहाँ टमाटर की कीमत ₹30 प्रती करेट के हिसाब से बीका। किसान को हेमाली का दो रूपये करेट और करेट का किराया 10% प्रति करेट काट कर केवल गाड़ी भाड़ा को देने लायक रुपए राजा को मिला। और टमाटर तोड़ने के लिए 20 लोगों को अपने ही जेब से और 1600 रूपया देना पड़ा। अंत में दुःखी होकर राजा जी ने बाकि बचे खेत के टमाटर को नहीं तोड़वाया।

खेत में सड़ते टमाटर

इस तस्वीर में टमाटर के खेत में देख सकते हैं कि, कितना अधिक मात्र में टमाटर पका हुआ है। जिसे राजा चंद्रवंशी रेट ना होने के कारण, सड़ने के लिए छोड़ने पे मजबूर हो गए। जिस कारण टमाटर सड़-सड़ के नीचे गिरते जा रहे है और राजा जी ने अपने पहचान के लोगों को बोल दिया है कि, जिसको जितना टमाटर चाहिए वो तोड़ कर ले जा सकते हैं। क्योंकि, टमाटर के सड़ने से अच्छा है कि, वो टमाटर किसी जरूरतमंद के काम आ जाए। लेकिन, सब्जी बनाने के लिए एक किलो टमाटर काफी होता है। उस हिसाब से लोग तीन-चार किलो टमाटर से अधिक नहीं ले जा रहे हैं। गांव के लोगों का कहना है कि, जो कोई भी चीज सस्ती हो जाती है, उसे लोग पसंद नहीं करते हैं। उसी प्रकार टमाटर के रेट कम होने के वजह से टमाटर कम मूल्य में उपलब्ध है। इस कारण लोग टमाटर ज्यादा ले भी नहीं रहे हैं और उतना खा भी नहीं रहे हैं। गांव के राजेश साहू का कहना है कि, जब तक टमाटर का रेट नहीं बढ़ता, तब तक अपने खेत से बेचने के लिए टमाटर नहीं तोड़ेंगे, भले ही टमाटर खेत में सड़ जाए।

धूप में सुख रहे टमाटर

सस्ते टमाटर का लाभ बाहर से आए बैगा लोग ही अधिक ले पा रहे हैं। क्योंकि, उन्हें और सब्जी लेना नहीं पड़ रहा है। वे लोग सुबह और शाम को केवल टमाटर की ही सब्जी बना रहे हैं और बाद में खाने के लिए टमाटर को काट कर छत में सुखा रहे हैं। जिससे बैगा लोग, सूखे टमाटर को टमाटर के रेट बढ़ जाने पर, इस सूखे टमाटर को सब्जी बनाने में उपयोग करेंगे।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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