रोजगार का अच्छा साधन है 'तेंदू पत्ता संग्रहण', जानिए पूरी प्रक्रिया के बारे में
- Ajay Kanwar
- Nov 13, 2021
- 3 min read
हर वर्ष छत्तीसगढ़ सरकार यहाँ के आदिवासियों को तेंदूपत्ता संग्रहण के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराती है। तेंदूपत्ता संग्रहण लोगों के जीवनयापन का अच्छा साधन बनता जा रहा है। यही कारण है कि तेंदुपत्ता को हरा सोना भी कहा जाता है। इन पत्तों की कीमत लगभग 400 रुपया प्रति सैकड़ा होता है। हालांकि पिछले वर्ष से संग्राहकों को कोरोना की वजह से थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा है।
ग्राम पंचायत झोरा के तेंदूपत्ता मुंशी 35 वर्षीय श्री हरपाल सिंह कंवर जी से मुलाकात हुआ तो उन्होंने हमें बताया कि, यह कार्य हर वर्ष अप्रैल-मई माह प्रारंभ किया जाता है। तेंदू पत्ता तोड़ाई करने के पहले तेंदू पेड की छटनी किया जाता है तेंदू पेड में जो पुराने पत्ते होते हैं उसको काट दिया जाता जिससे पेड पर नई पत्तियां निकल जाये और उसमें किसी तरह की खराबी ना हो। इस छटनी के कार्य के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कुछ पैसा भी दिया जाता है। जिसके माध्यम से गाँव के आदिवासी लोगों को छटनी के लिए कोटवार के माध्यम से सूचना दिया जाता है जिससे गाँव के लोग इक्कठा होकर छटनी के लिए जाते है । छटनी का कार्य ज्यादा दिन का समय नहीं लेता है जहाँ की जंगल बड़ी है वहीं थोड़ा ज्यादा समय लगता है अन्यथा छटनी का कार्य 3 से 4 दिन में पूरा हो जाता है, यह कार्य जनवरी फरवरी माह में कर लिया जाता है क्योंकि मई माह के आने तक उसमे नई पत्तियां आ चुकी होती है जिसके बाद सरकार द्वारा दिया गया राशि को छटनी करने वाले लोगो में बांट दिया जाता है। इसकी पारिश्रमिक राशि सीधे उनके बैंक खातों में जमा होती है।

आदिवासी तेंदूपत्ता का संग्रहण करने के लिए सुबह-सुबह ही निकल जाते हैं। संग्रहण कर लेने के बाद उन पत्तों को इकठ्ठा बाँधा जाता है। इसे पुडा कहते हैं, एक पुडा में 50 पत्ते होते हैं। पुडा बांधने के लिए भी जंगल के रस्सियों का उपयोग किया जाता है। जंगल में पाए जाने वाले मोहलाइन, डिंडोल, और गोंजा जैसे पेड़ों के छाल को काटकर पतली-पतली रस्सी बनाई जाती है।
जब सारे तेंदुपत्तों को पुडा में बांध लिया जाता है तो उसको फिर बेचने जाना पड़ता है बेचने के लिए गाँव के कुछ लोग साइकिल का उपयोग करते हैं, महिलाएं बड़ा सा गट्टा बांध कर सिर में रखकर बेचने जाती हैं। फिर मुंशी जहाँ भी तेंदूपत्ता सुखाने के लिए बोलता है वहीं रखकर सुखाया जाता है, इस तेंदूपत्ता पुडा को लाइन में सुखाना पड़ता है, इसे चट्टा कहा कहते हैं, एक चट्टा में 100 पुडा को सुखाया जाता है जिससे मुंशी को भी गिनने में आसानी होती है। 100 पुडा में 5 पुडा अतिरिक्त लेकर जाना पड़ता है, इसको सरा कहते हैं, यदि आँधी पानी आदि से कोई पुड़ा खराब हो जाए तो, उस समय उसकी भरपाई उसी सरा से करते हैं।
सभी तेंदूपत्ता संग्राहकों के पास तेंदूपत्ता का कार्ड बना होता है जब भी संग्राहक अपनी-अपनी तेंदूपत्ता को बेचने जाते हैं तो कितना पत्ता तोड़े हैं, उसको उनके कार्ड में मुंशी जी डाल देते हैं। और मुंशी जी अपनी भी रजिस्टर में उसको लिखता है, जिससे किसी भी प्रकार की गलती ना हो। संग्राहकों के तेंदूपत्ता की गुणवत्ता को देखने के लिए एक चेकर नियुक्त किया जाता है जो संग्रहको के तेंदूपत्ता को चेक करते हैं कि कहीं उनके पत्ते में कोई खराबी तो नहीं है ।
पुरुषों की अपेक्षा महिलायें ही इस कार्य में ज्यादा दिलचस्पी रखती हैं। महिलाएं तेंदूपत्ता तोड़ाई में समय भी कम लेती हैं और पत्ता भी ज्यादा तोड़ती हैं। जिस घर में अधिक महिलाएं होती है तो वे और भी ज्यादा पत्ते तोड़ लेती हैं। गाँव की कुछ महिलाओं से बातचित किया गया तो पता चला कि वे इस साल ठीक से पत्ता तोड़ाई नहीं कर पाए क्योंकि लगातार मौसम बिगड़ने के कारण लोग पत्ता भी नही खरीद रहे हैं।

माता, पिता यदि तेंदूपत्ता के संग्रहक हैं, तो सरकार की और से इन छात्रों को छत्तीसगढ़ सरकार स्कॉलरशिप देती है परंतु यह पैसा उन्हें एक साल बाद मिलता है अगर 9वीं में फॉर्म डालें हैं तो 10वीं में मिलेगा।
तेंदू के पेड़ छत्तीसगढ़ में सब तरफ हैं, जिस वजह से आदिवासी किसानों के लिए तेंदू पत्ता संग्रहण का कार्य आसानी से हो जाएगा। सही से यदि किया तो इस कार्य के जरिये गरीब आदिवासी अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर कर सकते हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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