top of page
Writer's pictureYamini Netam

औषिधिए गुणों से भरपूर है जामुन, इससे अनेकों रोगों का होता है इलाज

जंगलों में मिलने वाले हर पेड़-पौधे और फल-फूल का उचित उपयोग करने आदिवासी समुदाय के लोग बखूबी जानते हैं। जंगल के अनेकों उत्पादों का उपयोग औषिधि के रूप में बहुतायत में होता है, ऐसे ही औषिधिए गुणों से भरपूर है जामुन का पेड़। अलग-अलग जगहों पर जामुन को अलग अलग नामों से जाना जाता है, जैसे- जामुन, राजमन, काला जामुन, जमाली, आदि।


प्राकृतिक रूप में यह क्षारीय और कसैला होता है एवं स्वाद में मीठा होता है। क्षारीय प्रकृति के कारण सामान्यत: इसे नमक के साथ खाने पर यह और भी स्वादिष्ट हो जाता है। इसे गाँव तथा जंगलों के निवासी बड़े चाव से खाते हैं। जामुन के पेड़ पर मई के महीने में फल लगना शुरू होते हैं, और जून में पक जाते हैं। पकने से पहले इस फल का रंग हरा होता है, लेकिन पकने के बाद यह नीला तथा काले रंग का हो जाता है।

तोड़े हुए जामुन

जामुन के पेड़ को घर पर भी लगा कर इसका उपयोग कर सकते हैं। आदिवासी जामुन को तोड़ कर लाने के पश्चात उसे पानी में धोकर एक साफ़ और सुखी कटोरी में रखते हैं। उसके बाद इसको कड़ी धूप में सुखा देते हैं। लगभग एक घंटा सुखाने पर जामुन के साथ जो कंकड़ या धूल या छोटे-छोटे कीड़े होते हैं या बाहर निकल जाते हैं। जामुन तैयार होने के बाद इसे मार्केट में भी बेचकर कुछ आमदनी प्राप्त किया जाता है। कुछ लोग जामुन का उपयोग सिर्फ़ खाने में करते हैं, इसका स्वाद इतना स्वादिष्ट होता है कि बच्चे हो या बूढ़े सबको भाता है। फिर हम इसे घर के उपयोग मे ला सकते है! जैसे कि उन्होंने बताया कि वाह इस जामुन के फल को खाने में बहुत स्वादिष्ट होती हैं। इसके फल को खाने से हमें विटामिन सी भी प्राप्त होता है।


जामुन का फल 70 प्रतिशत खाने योग्य होता है। अन्य फलों की तुलना में यह कम कैलोरी प्रदान करता है। एक मध्यम आकार का जामुन 2-3 कैलोरी देता है। जामुन में खनिजों की संख्या अधिक होती है, इस फल के बीज में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम की अधिक मात्रा होती है। जामुन के प्रति 100 ग्राम में एक से दो मि.ग्रा आयरन होता है। इसमें विटामिन बी, कैरोटिन, मैग्नीशियम और फाइबर होते हैं।


छत्तीसगढ़ में जिला गरियाबंद स्थित ग्राम विजय नगर हरदी निवासी श्रीमती रमोतिन बाई तथा जमुना बाई जी ने बताया कि, चिरई जामुन से वे औषधि भी तैयार करते हैं ! जो की बहुत ही लाभदायक है। चिरई जामुन से कई प्रकार की दवाई बनाई जाती है जिससे अनेक रोगों का ईलाज होता है। जैसे- 1. कान दर्द, 2. बल्ड सुगर, 3. मुंह में छाले आदि। मसालेदार भोजन या किसी अन्य कारण से पेचिश की समस्या हो जाती है। पेचिश में दस्त के साथ खून आने लगता है। जामुन पेड की छाल से रस निकाल लें और इसमें समान भाग में बकरी या गाय की दूध मिलाकर पीने से इससे फायदा पहुँचता है।

जामुन इकट्ठा करती महिला

जामुन के छिलका, पत्ता, फल सभी का आयुर्वेदिक दवा अपने हाथों से बनाई जा सकती हैं। इस दवाई के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, यह बहुत ही फायदेमंद व उपयोगी है। जामुन से बने औषधि का उपयोग हमारे पूर्वजों ने पिछले कई सालों सेकरते आ रहे थे। लेकिन अब इसका उपयोग धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। आदिवासीयों से बेहतर प्रकृति को कोई नहीं जानता, वे शरीर पर होने वाले सभी रोगों का इलाज प्रकृति से कर लेते हैं। आज के इस तेज़ी से बदलती दुनिया में आदिवासियों के इस ज्ञान को पूरी दुनिया तक ले जाने की ज़रूरत है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


Comments


bottom of page